Wednesday, November 3, 2010

Parama Ekadashi purushotam krishna paksh.... Parmaa Ekadashi

Parama Ekadashi purushotam krishna paksh....
Parmaa Ekadashi


 
Arjuna said: " Hey Janaardan ! what is the name of the Ekadashi of extra month{Lond/mal/Purushotam} , please let me know the process of this fast, which God is worshiped in it and
and what is the effect of this fast.?"

Lord Shri Krishna said : "Hey Partha...! This Ekadashi is known as Parma Ekadashi.It is the destructor of all the sins and a man gets happiness in this world and deliverance in the
other/spiritual world.Lord Vishnu must be worshiped with incense, prashada, lamp.The story of this Ekadashi which happened with the maharishis{great sages} now, listen to that carefully.

In the Kaampilaya city , there lived a very religious brahmin named Sumedha .His wife was very chaste and pure.But because of some sin in the past, he was very poor.His wife used to serve
her husband and used to stay hungry after providing food to the guests.

He said to his wife:" Dear, without money, married life is not possible, so I must leave to go abroad to earn some money."


His wife said, :"Hey , master, wife must obey her husband, no matter what.Every human gets the result of his previous births.Whatever Lord has written in our destiny, fortune, it cannot be changed.
Master, so you need not go anywhere else, whatever is in our luck, we will get it here only."

So brahmin did not go abroad on the suggetion of his wife.Once sage Kaundilya , came to their place.Seeing him there, brahmin and his wife greeted him saying:"Our life is blessed with your Darshan."
They provided sage with Aasana and food.

Wife said to the sage:" With our good fortune you have came to our place. I believe that now our poverty will be destroyed.hey sage please tell us some solution to prevent our poverty."

Then Sage Kaundilya said: "By keeping the fast of Parma Ekadashi of the Purushotama, or extra month all the sorrows, sins and poverty get destroyed.One becomes rich by keeping this fast.
One should do Kirtana, and night awakening in this fast.Mahadeva has made Kubera, the God of wealth, as he kept this fast."

Then sage Kaundilya told her the process of Parma Ekadashi fast.sage said: "Hey Brahmani, on this day, in the early morning after getting purified, one should start the process of keeping the
'Pancharatri'{for 5 nights}.Those who kep ths for 5 days, attain heaven along with their parents.Hey Brahmani, you keep this fast along with your husband, with its effect, you will certainly attain
what you wish for along with heaven after this life."

The couple kept the fast for 5 days as sugested by the sage.After it was done, brahmin's wife saw a prince coming near to their place.With Brahmaji's influence, the prince gave them 1 village and 1
beautiful house filled with all the needed things, to live.With the effect of this fast, the couple enjoyed several pleassures and attained heaven afterwords."

"Hey Partha, one who keeps this fast, gets the result equal to doing all the pilgrimages and the yagnas.As in this world, cows are greatest above all , and King Indra is greates among all the dieties,
likewise, month of Purushottama is greatest among all the other months.In this month, Padmini Ekadashi is the greatest and with its fast, all the sins are destroyed
and holy, worlds are attained."



परमा एकादशी

अर्जुन बोले : हे जनार्दन ! आप अधिक (लौंद/मल/पुरुषोत्तम) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम तथा उसके व्रत की विधि बतलाइये । इसमें किस देवता की पूजा की जाती है तथा इसके व्रत से क्या फल मिलता है?

श्रीकृष्ण बोले : हे पार्थ ! इस एकादशी का नाम ‘परमा’ है । इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य को इस लोक में सुख तथा परलोक में मुक्ति मिलती है । भगवान विष्णु की धूप, दीप, नैवेध, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए । महर्षियों के साथ इस एकादशी की जो मनोहर कथा काम्पिल्य नगरी में हुई थी, कहता हूँ । ध्यानपूर्वक सुनो :

काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था । उसकी स्त्री अत्यन्त पवित्र तथा पतिव्रता थी । पूर्व के किसी पाप के कारण यह दम्पति अत्यन्त दरिद्र था । उस ब्राह्मण की पत्नी अपने पति की सेवा करती रहती थी तथा अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी ।

एक दिन सुमेधा अपनी पत्नी से बोला: ‘हे प्रिये ! गृहस्थी धन के बिना नहीं चलती इसलिए मैं परदेश जाकर कुछ उद्योग करुँ ।’

उसकी पत्नी बोली: ‘हे प्राणनाथ ! पति अच्छा और बुरा जो कुछ भी कहे, पत्नी को वही करना चाहिए । मनुष्य को पूर्वजन्म के कर्मों का फल मिलता है । विधाता ने भाग्य में जो कुछ लिखा है, वह टाले से भी नहीं टलता । हे प्राणनाथ ! आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं, जो भाग्य में होगा, वह यहीं मिल जायेगा ।’

पत्नी की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया । एक समय कौण्डिन्य मुनि उस जगह आये । उन्हें देखकर सुमेधा और उसकी पत्नी ने उन्हें प्रणाम किया और बोले: ‘आज हम धन्य हुए । आपके दर्शन से हमारा जीवन सफल हुआ ।’ मुनि को उन्होंने आसन तथा भोजन दिया ।

भोजन के पश्चात् पतिव्रता बोली: ‘हे मुनिवर ! मेरे भाग्य से आप आ गये हैं । मुझे पूर्ण विश्वास है कि अब मेरी दरिद्रता शीघ्र ही नष्ट होनेवाली है । आप हमारी दरिद्रता नष्ट करने के लिए उपाय बतायें ।’

इस पर कौण्डिन्य मुनि बोले : ‘अधिक मास’ (मल मास) की कृष्णपक्ष की ‘परमा एकादशी’ के व्रत से समस्त पाप, दु:ख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं । जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह धनवान हो जाता है । इस व्रत में कीर्तन भजन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिए । महादेवजी ने कुबेर को इसी व्रत के करने से धनाध्यक्ष बना दिया है ।’

फिर मुनि कौण्डिन्य ने उन्हें ‘परमा एकादशी’ के व्रत की विधि कह सुनायी । मुनि बोले: ‘हे ब्राह्मणी ! इस दिन प्रात: काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर विधिपूर्वक पंचरात्रि व्रत आरम्भ करना चाहिए । जो मनुष्य पाँच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं, वे अपने माता पिता और स्त्रीसहित स्वर्गलोक को जाते हैं । हे ब्राह्मणी ! तुम अपने पति के साथ इसी व्रत को करो । इससे तुम्हें अवश्य ही सिद्धि और अन्त में स्वर्ग की प्राप्ति होगी |’

कौण्डिन्य मुनि के कहे अनुसार उन्होंने ‘परमा एकादशी’ का पाँच दिन तक व्रत किया । व्रत समाप्त होने पर ब्राह्मण की पत्नी ने एक राजकुमार को अपने यहाँ आते हुए देखा । राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से उन्हें आजीविका के लिए एक गाँव और एक उत्तम घर जो कि सब वस्तुओं से परिपूर्ण था, रहने के लिए दिया । दोनों इस व्रत के प्रभाव से इस लोक में अनन्त सुख भोगकर अन्त में स्वर्गलोक को गये ।

हे पार्थ ! जो मनुष्य ‘परमा एकादशी’ का व्रत करता है, उसे समस्त तीर्थों व यज्ञों आदि का फल मिलता है । जिस प्रकार संसार में चार पैरवालों में गौ, देवताओं में इन्द्रराज श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार मासों में अधिक मास उत्तम है । इस मास में पंचरात्रि अत्यन्त पुण्य देनेवाली है । इस महीने में ‘पद्मिनी एकादशी’ भी श्रेष्ठ है। उसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्यमय लोकों की प्राप्ति होती है

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