Wednesday, November 3, 2010

Putrada/Vaikunth Ekadashi Paush Shukla Paksh..Dec-Jan

Putrada/Vaikunth Ekadashi
Paush Shukla Paksh..Dec-Jan



Yudhishthir said :" Shrikrishna ! please elaborate the glory of Ekadashi of Paush Shukla Paksh, what
is its name, what is its process and which deity is worshipped in it?"
Lord Visnu's Footprint

Lord Shrikrishna said :"Hey king the Ekadashi of Paush Shukla Paksh, is Putradaa Ekadashi."

" On the day of Putradaa Ekadashi, one should worship Lord ShriHari chanting the holy mantras, along with coconuts, betalnut, pomegranate, beautiful Amla, cloves, bijora and jamira lemon, bers, and especially with the mango fruit and lamp and incense.On the Safala Ekadashi, it is a special provision of doing charity of the lamps.During the night one must stay awake and do jagran with the Vaishnava devotees.The effect of doing the jaagran is much more than doing meditation for thousands of years."It is a holy date , it destroys all the sins."

In the whole world there is no ther date as Ekadashi.The granter of all the wishes, Lord Naarayan is its God.

In ancient times there was a king named Suketumaan of Bhadraavatipuri.His queen named Champaa.King did not have a haeir for a long time.

Hence the couple was very sad all the time. Pitars{ancestors } used to drink water offered by him sadly{as there was nobody after him to offer them again later.}

"After the king, we cannot see any who will satiate us"thinking this ancestors used to be very sad.

One day king went to deep jungle on the horseback.Even the priest etc. did not know about this.In that jungle filled with deers and birds king started roaming . 

On the way he could hear jackal somewhere, and an owl somewhere.He could see the beers and deears here and there.Hence the king was wandering and enjoying the beauty of the forest and it was noontime now.King felt thirsty and hungry now.He started roaming here and there in the search of water now.With the efect of some good karma of the past he sae a great pond, which was surrounded by hermitages of hermits.Beautiful king saw those hermitages.

He felt good omen.He could feel some movement in his right eye and right hand, which gave him the indication of something good that will happen.On the shore of the pond ,sages were chanting the Vedas.Seeing them the king was pleased.He descended from the horseback and started greeting the sages one by one.Those sages were the keepers of great fasts, traditions,seeing the king kowtowing them on the ground to greet them, they were all pleased and spoke ;"Hey King, we are pleased by you."

king spoke :"Who are you people?What are your names? why have you all gathered here ? please tell me."

Sages spoke :"Hey king we are Vishvedevas .We have came here to take a bath .The month of Maagha is approaching.On the fifth day from today, the festival of taking holy bath on the month of maagh will start.It is Putradaa Ekadashi today, which provides sons to those who keep this fast."

King said :"Hey Vishvedevaas, please bless me a son if you are pleased by me."

Sages said :"Hey king it is putradaa Ekadashi today, do keep its fast.
With Lord KEshava's grace you will certainly have a son."

Lord ShriKrishna said :"Yudhthir, hence the king kept the fast as adviced by the sages.As suggested by those great saints, he did the anushthaana of the fast.

On the dwaadashi, he ended his fast and greeted the sages and came back.Later the quenn concieved.The pious king got a great son , whom with his great qualities satiated the king.He took care of the subjects very well."

" Hence King, one should keep this fast of Putradaa Ekadashi.I have elaborated its glory in the interest of the people.

Those who keep this fast with concentration, they attain a son in this world and attain heaven after this life.By reading this glory of Putradaa Ekaadashi, one attains the effect of doing Agnishtoma yagna."

पुत्रदा/वैकुण्ठ एकादशी



युधिष्ठिर बोले: श्रीकृष्ण ! कृपा करके पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का माहात्म्य बतलाइये । उसका नाम क्या है? उसे करने की विधि क्या है ? उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: राजन्! पौष मास के शुक्लपक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम ‘पुत्रदा’ है ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा श्रीहरि का पूजन करे । नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा नींबू, जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों से देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए । इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करे ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता । यह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है ।

चराचर जगतसहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है । समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं ।

पूर्वकाल की बात है, भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम चम्पा था । राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ । इसलिए दोनों पति पत्नी सदा चिन्ता और शोक में डूबे रहते थे । राजा के पितर उनके दिये हुए जल को शोकोच्छ्वास से गरम करके पीते थे । ‘राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा …’ यह सोच सोचकर पितर दु:खी रहते थे ।

एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गये । पुरोहित आदि किसीको भी इस बात का पता न था । मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन में राजा भ्रमण करने लगे । मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की । जहाँ तहाँ भालू और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे । इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गयी । राजा को भूख और प्यास सताने लगी । वे जल की खोज में इधर उधर भटकने लगे । किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत से आश्रम थे । शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा । उस समय शुभ की सूचना देनेवाले शकुन होने लगे । राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था । सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे । उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ । वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे । वे मुनि उत्तम व्रत का पालन करनेवाले थे । जब राजा ने हाथ जोड़कर बारंबार दण्डवत् किया, तब मुनि बोले : ‘राजन् ! हम लोग तुम पर प्रसन्न हैं।’

राजा बोले: आप लोग कौन हैं ? आपके नाम क्या हैं तथा आप लोग किसलिए यहाँ एकत्रित हुए हैं? कृपया यह सब बताइये ।

मुनि बोले: राजन् ! हम लोग विश्वेदेव हैं । यहाँ स्नान के लिए आये हैं । माघ मास निकट आया है । आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा । आज ही ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है,जो व्रत करनेवाले मनुष्यों को पुत्र देती है ।

राजा ने कहा: विश्वेदेवगण ! यदि आप लोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये।

मुनि बोले: राजन्! आज ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो । महाराज! भगवान केशव के प्रसाद से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उक्त उत्तम व्रत का पालन किया । महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ का अनुष्ठान किया । फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये । तदनन्तर रानी ने गर्भधारण किया । प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया । वह प्रजा का पालक हुआ ।

इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए । मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है । जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा एकादशी’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।


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