Wednesday, February 9, 2011

उ प्र में मायावती जी के अब तक के कार्यकाल क़ी गतिविधियों से दलित समाज क़ी उपेक्षित जातियों में सर्वाधिक नाराजगी है

उ प्र में मायावती जी के अब तक के कार्यकाल क़ी गतिविधियों से दलित समाज क़ी उपेक्षित जातियों में सर्वाधिक नाराजगी है 
 
Yogesh Saxena खिलवाड़ लालू ,पासवान के बाद अगला नंबर उ.प्र . में मायावती का

बिहार विधान सभा चुनाव परिणामों से मायावती जी को सबक जरूर लेना चाहिए उ प्र में मायावती जी के अब तक के कार्यकाल क़ी गतिविधियों से दलित समाज क़ी उपेक्षित जातियों में सर्वाधिक नाराजगी है और यदि उ प्र में भी बिहार क़ी तरह सामाजिक न्याय के नितीश फार्मूले क़ी तर्ज पर कोई नया राजनैतिक गटबंधन बना तो उपेक्षित जातियां इतनी संख्या में हैं कि वे सरकार बना बिगाड़ सकती हैं

उ प्र में कुल मिलाकर 65 दलित जातियां हैं लेकिन मायावती जी कि अपनी जाति चमार ,जाटव के अलावा कोरी, खटिक ,बाल्मीकि .धोबी ,मुसहर ,डोम .खरवार समेत अधिकांश दलित जातियों की ना तो सत्ता ना ही संगठन के स्तर पर कोई भागीदारी है 

बसपा के ७०जिलाध्यक्षों,१७ मंडल संयोजकों में से एक भी गैर चमार नहीं है उ प्र लोक सेवा आयोग(एसआर लाखा.) उ प्र उच्चत्तर शिक्षा सेवा चयन बोर्ड(जे प्रसाद ) ,उ प्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड(चैन सुख भारती )अध्यक्षों ,सदस्यों समेत इलाहाबाद हाईकोर्ट में नवनियुक्त विधि परामर्शी में एक भी इन उपेक्षित दलित जातियों का नहीं है अधिकांश मायावती जी की अपनी जाति के लोग हैं वैसे भी मायावती जी की हिम्मत की दाद देनी चाहिए क्योंकि वो तो लखनऊ की २००९ अगस्त जनसभा में लाखों लोगों के सामने कह ही चुकी हैं कि मेरे मरने के बाद मेरा उत्तराधिकारी मेरी जाति (चमार) का ही होगा l

उ प्र में दलित एक्ट को ख़त्म करने का प्रयास मायावती जी ने किया था जिस पर डा उदित राज जी द्वारा जनहित याचिका दायर करने की वजह से इस दलित कानून को बचाया जा सका आज भी इस कानून के अधिकांश प्रावधानों को उ प्र में लागू नहीं किया गया है l पेरियार क़ी प्रतिमा लगाने पर उ प्र में आज भी प्रतिबन्ध है डॉ आंबेडकर क़ी सामाजिक सांस्कृतिक विचार धारा जो सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध है उसका सबसे ज्यादा मजाक मायावती जी द्वारा उड़ाया जा रहा है l

आधुनिक भारत में डॉ आंबेडकर और उनका बनाया संविधान ही सामाजिक न्याय का पर्याय है वही इसका असली स्वरुप है संविधान सभा में नीति निदेशक तत्वों के लम्बे चौड़े अनुच्छेदों क़ी उपादेयता पर डॉ आंबेडकर ने कहा था संसदीय लोकतंत्र में सरकारों को प्रत्येक ५ वर्ष में जनता का विश्वास अर्जित करना पड़ेगा और जो सरकारें सामाजिक न्याय के प्रश्न पर संवेदनशील नहीं होंगी जनता ऐसे सरकारों को खुद बदल देगी कुल मिलाकर उपेक्षित जातियों में अपनी लगातार उपेक्षा के कारण एक जबरदस्त अंडर करेंट है और इनका वोट भी लगभग १६,१७प्रतिशत है जो सरकार बनाने बिगाड़ने में निर्दायक होगा l 

बिहार में भी लम्बे समय से लालू .पासवान द्वारा अपने वोटरों क़ी भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा था और सामाजिक न्याय क़ी राजनीति को अपने ढंग से परिभाषित किया जा रहा था बिहार का परिणाम और उ प्र में लोकसभा २००९ के बीते हुए चुनाव परिणामों से मायावती ,लालू .पासवान समेत अन्य दलित, पिछड़े नेताओं और कांग्रेस .बीजेपी जैसे बड़े राजनैतिक दलों और इनके क्षत्रपो को समझ लेना चाहिए कि भारत का लोकतंत्र स्वतंत्रता, समानता ,बधुता के तीन स्तंभों पर आधारित सामाजिक न्याय कि राजनीति के इर्द गिर्द ही घूमेगा क्योंकि यही उसका लक्ष्य है और यही उसकी वास्तविकता l वैसे भी आँख बंद कर लेने से अँधेरा नहीं हो जाता l 

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