Tuesday, February 1, 2011

'देवबंद' यानी नैतिकता के पहरुए-They-are-ethics-watchdog फरजंद अहमद, साथ में सुरेंद्र सिंघल | सौजन्‍य: इंडिया टुडे | देवबंद, 23 जनवरी 2011

'देवबंद' यानी नैतिकता के पहरुए-They-are-ethics-watchdog
फरजंद अहमद, साथ में सुरेंद्र सिंघल | सौजन्‍य: इंडिया टुडे | देवबंद, 23 जनवरी 2011

http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/49016/42/0/1/2/Deoband-They-are-ethics-watchdog.html 

जब 60 वर्षीय इस्लामी विद्वान और एमबीए डिग्रीधारी मौलाना गुलाम मुहम्मद वस्तानवी देवबंद के धार्मिक शिक्षा संस्थान दारुल उलूम के मोहतमिम बने तो कई लोगों ने इसे आने वाले आशावादी दिनों का संकेत माना था. उनकी इन घोषणाओं से कि ''सभी समुदाय'' नरेंद्र मोदी के गुजरात में समृद्ध हो रहे हैं और ''विकास के मामले में, राज्‍य में अल्पसंख्यकों के प्रति कोई भेदभाव नहीं है'' इन उम्मीदों को बल मिला था. उन्होंने राज्‍य के मुसलमानों से पढ़ने के लिए भी कहा था क्योंकि ''सरकार उन्हें नौकरियां देने के लिए तैयार है.''

लेकिन इधर वस्तानवी गुजरात के मुसलमानों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे तो उधर देवबंद के मौलाना मुहम्मद सलीम सहित 140 से अधिक इमाम एक बैठक करके शादियों में डिस्क जॉकियों (डीजे) के आयोजन और दहेज के सार्वजनिक प्रदर्शन के खिलाफ फतवा जारी कर रहे थे.

नवगठित मुत्तहदा महाज की यह बैठक मुजफ्फरनगर में नुमाइश कैंप इलाके की एक मस्जिद में हुई, जहां जिला जमीअत उलेमा-ए-हिंद का सदर दफ्तर भी स्थित है. मुफ्ती-ए-शहर और जमीअत की जिला इकाई के प्रमुख मौलाना मुफ्ती जुल्फिकार अली कहते हैं, ''हमने ब्याह-शादियों के दौरान डीजे और नाच-गाने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया क्योंकि शरीअत के अनुसार यह हराम है.''

इस इलाके में इस पाबंदी का व्यापक रूप से स्वागत हुआ. चंद बरस पहले भी अलीगढ़ में कुछ मुस्लिम नौजवानों ने शरीअत का हवाला देते हुए शानो-शौकत वाली शादियों में न जाने का फैसला किया था. पर उनमें यह जोश-खरोश जल्दी ही गायब हो गया था.

मौलाना अली ने इंडिया टुडे को बताया कि ग्रामीण इलाकों में मुस्लिम समाज में सुधार के लिए एक अभियान चलाया जाएगा, जिसके जरिए समुदाय के लोगों, खासकर नौजवानों, को बताया जाएगा कि अनैतिक अथवा कामुक विषयवस्तु वाला संगीत न बजाया जाए या दहेज का प्रदर्शन न किया जाए और सामुदायिक भोज में खड़े होकर खाना न खाया जाए. उनके मुताबिक, केवल जानवर ही खड़े रहकर भोजन करते हैं.

यह संयोग हो सकता है कि उक्त बैठक वस्तानवी के पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद हुई, जिसके दौरान व्यापक रूप से यह उम्मीद की गई कि वे शिक्षा संस्थान की फतवा फैक्टरी वाली छवि को बदलने और उस पर लगे प्रतिगामी ठप्पे को हटाने में मददगार होंगे. इसी तरह यह भी संयोग हो सकता है कि उक्त बैठक मुजफ्फरनगर में हुई खाप पंचायत की ओर से लड़कियों के जीन्स पहनने पर पाबंदी लगाने के अगले ही दिन आयोजित की गई थी.

इससे पहले जमीअत के सशक्त प्रभाव वाले देवबंद के शिक्षा संस्थान ने ऐसी पाबंदी जारी की थी. मुजफ्फरनगर दो साल पूर्व एक महिला से उसके ही ससुर द्वारा बलात्कार करने के मामले में सुर्खियों में आया था. कुकर्मी को सजा देने के बजाए मुल्लाओं ने फतवा सुनाया था कि वह अपने पति के लिए हराम हो गई है और उसके ससुर को ही उसका पति माना जाए.

मुसलमानों के सभी फिरकों और विचार-शाखाओं की नुमाइंदगी करने वाला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश भर में मुस्लिम समाज के भीतर सुधार की मुहिम चलाता आया है. इस्लाह-ए-मुआशरा नामक उसकी मुहिम धन-दौलत के भौंडे प्रदर्शन के अलावा शादियों, दहेज और तलाक के दौरान गैरजरूरी शानो-शौकत के खिलाफ है. बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य जफरयाब जिलानी के मुताबिक, उनके संगठन ने इमामों और आम मुसलमानों से हमेशा ऐसी शादियों का बहिष्कार करने को कहा है, जहां गैरजरूरी खर्च होता है. उनका कहना है, ''मुजफ्फरनगर में लिए गए फैसले देश भर में लागू किए जाने चाहिए.''

उन्होंने बताया कि जिन लोगों के पास बेहिसाब हराम की कमाई होती है, उन्हें अपनी धन-दौलत का प्रदर्शन करना भाता है और वे उसे पटाखों, नाच-गाने तथा ठाठ-बाट वाली दावतों पर खर्च करते हैं. मुस्लिम समाज पर इस प्रदर्शन का कुप्रभाव पड़ता है, जिसका नतीजा यह होता है कि दहेज और दावतों की मांग बढ़ती जाती है और गरीब परिवारों के लिए अपनी बेटियों की शादी करना मुहाल हो जाता है.

लखनऊ के प्रतिष्ठित नौजवान मुल्ला मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली के अनुसार, हर कोई जानता है कि शरीअत में गाने और धन-दौलत के भौंडे प्रदर्शन अथवा जबरी दहेज की इजाजत नहीं है, पर बहुत-से लोग ऐसा प्रदर्शन करते हैं क्योंकि यह हैसियत की निशानी है. उनका कहना है, ''इसे ताकत से नहीं, सिर्फ तालीम और सुधारों से रोका जा सकता है.'' इंसानी फितरत ही ऐसी है कि जो बात लोगों पर थोपी जाए, वे उसके उलट करते हैं.

 

 

 

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