एक बार फ़िर हिलने लगा था इंद्र का सिंहासन ।
भला कि जय मेनका ने सिखलाया समझौते का आसन ॥
बढ़ी विश्वामित्र के गौरव की जद ।
स्वीकार हुआ ब्रह्म ऋषि का पद ।।
शरद रितु का पवार बन गया सूर्पणखा ।
कर न सका कुछ झोंक भाड़ का ।
एक खेमा झूम झूम खुशी मनाता ।
एक टाल पराजय सांस राहत की पाता ।।
दूर खड़ा संपादक चिल्लाता ।
इस जीत से मेरा भी नाता ॥
एक भगवा झंडा हुआ है ढीला ।
भ्रष्ट आचरण ने किया था गीला ॥
न बात चलती आज विश्वामित्र की ।
जो राह चलते सदचरित्र की ॥
मंत्रीगण मुक्त हुये चाल टेढ़ी चलने को ।
मायावी मरीच मुक्त हुआ मनमर्जी करने को ।।
मरीच को क्या 2 जी से 3 जी हो जायेगा ।
भारत का जन मानस फ़िर हाथ मलते रह जायेगा ॥
लेखक - पंडित राम किशोर मेहता एवं अरूणेश दवे
भला कि जय मेनका ने सिखलाया समझौते का आसन ॥
बढ़ी विश्वामित्र के गौरव की जद ।
स्वीकार हुआ ब्रह्म ऋषि का पद ।।
शरद रितु का पवार बन गया सूर्पणखा ।
कर न सका कुछ झोंक भाड़ का ।
एक खेमा झूम झूम खुशी मनाता ।
एक टाल पराजय सांस राहत की पाता ।।
दूर खड़ा संपादक चिल्लाता ।
इस जीत से मेरा भी नाता ॥
एक भगवा झंडा हुआ है ढीला ।
भ्रष्ट आचरण ने किया था गीला ॥
न बात चलती आज विश्वामित्र की ।
जो राह चलते सदचरित्र की ॥
मंत्रीगण मुक्त हुये चाल टेढ़ी चलने को ।
मायावी मरीच मुक्त हुआ मनमर्जी करने को ।।
मरीच को क्या 2 जी से 3 जी हो जायेगा ।
भारत का जन मानस फ़िर हाथ मलते रह जायेगा ॥
लेखक - पंडित राम किशोर मेहता एवं अरूणेश दवे
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