शक के घेरे में खड़ा मुसलमान !
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। मानवता, न्याय और यकीन की बुनियाद पर खड़े इस्लाम पर उंगलियां उठ रही हैं। गैर मुसलमानों की नई पीढ़ी में एक शक घर कर रहा है कि क्या आतंकवाद फैलाने का काम मुसलमान करते हैं? दुनिया में जो आंखें खोल रहे हैं उनके सामने से इस्लाम की सही तस्वीर ओझल हो रही है। इस पीढ़ी की यह बदकिस्मती कहेंगे कि वह उपदेशों, शिक्षा और नसीहतों से भरे इस्लाम के खज़ाने से कुछ भी हांसिल नहीं कर पा रही है। वह एक नए और भयानक बियाबान में जा रही है जहां उसका इंसान के बजाय हैवान से सामना हो रहा है। वहां एक से बढ़कर एक इस्लामिक विद्वानों की नहीं बल्कि कार्बाइन, मशीनगनों और धमाकों की भाषा सुनी जा रही है। एक इटैलियन शोधकर्ता लौरेटा नेपोलियोनी ने मुसलमानों के जिहादी संगठनों के वित्तीय तंत्र का अध्ययन करके एक निष्कर्ष निकाला है। एक अनुमान के आश्चर्यजनक परिणाम के अनुसार मुस्लिम आतंकवाद की अर्थव्यवस्था डेढ़ लाख करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष यानी ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद की दुगुनी है। इस अर्थव्यवस्था में मदरसों, इस्लामी धर्मार्थ संगठनों, इस्लामी वित्तीय संस्थानों आदि का बहुत बड़ा योगदान है। यह आंकड़ा इस्लामी आतंकवाद के विस्तार और उसकी शक्ति का परिचय देने के लिए पर्याप्त है।
भारत के लिए तो आतंकवाद एक चिरपरिचित चेहरा है। लंदन से अमरीका जा रहे विमानों को विस्फोटकों से उड़ाने की साजिश का पर्दाफाश करके ब्रिटेन की पुलिस ने आतंकवाद के अंतरराष्ट्रीय चेहरे को उजागर किया । ग्यारह सितंबर 2001 को न्यूयार्क में विश्व व्यापार केंद्र को विमानों से टक्कर मारकर ध्वस्त करने, पेंटागन पर आंशिक रूप से हमला करने में सफलता प्राप्त करने और पेंसिलवेनिया में विमान से हमला करने में विफल रहने की घटनाओं ने पश्चिमी दुनिया को आतंकवाद के असली और खूंखार चेहरे से परिचित कराया ही था। इसके पहले जब भी यह चेहरा अमरीका और अन्य पश्चिमी देशों के सामने आया, उन्होंने इसे पुराने दोस्त का चेहरा समझकर नजरअंदाज किया।
ग्यारह सितंबर के बाद भी उन्होंने केवल अपनी सुरक्षा और चौकसी बढ़ाने पर ही ध्यान दिया, इस कैंसर को जड़ से खत्म करने पर नहीं। भारत जैसे देशों के साथ उन्होंने मात्र शाब्दिक सहानुभूति प्रकट की। भारत में होने वाली आतंकवादी घटनाओं के स्रोत पर कभी ध्यान नहीं दिया। जब भी भारत ने पाकिस्तान की भूमिका की ओर इशारा किया, अमरीका ने उसे पुख्ता सबूत देने को कहा। वह भी जब उसके एक युवा पत्रकार डैनियल पर्ल की पाकिस्तान में उमर शेख ने मध्ययुगीन ढंग से सिर कलम करके हत्या कर दी जिसने भारत में आतंकवादी गतिविधियां चलाई थीं।
दस अगस्त, 2006 को ब्रिटेन में पुलिस ने जिन 21 व्यक्तियों को को पकड़ा वे सभी पाकिस्तानी मूल के थे। भारत की आर्थिक नगरी मुंबई की ट्रेनों में हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के बारे में खुफिया एजेंसियों की यह राय रही है कि इन्हें अंजाम देने वाले भारतीय नागरिक हो सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने इशारों पर नचाने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी ही हैं। अधिक संभावना तो यही है कि इन्हें पाकिस्तान सरकार का वरदहस्त प्राप्त है, लेकिन यदि जनरल परवेज मुशर्रफ को संदेह का लाभ भी दिया जाए, तब भी इतना तय है कि भारत विरोधी मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों पर पाकिस्तानी सरकार कोई अंकुश नहीं लगाना चाहती। लश्कर-ए-तैयबा के जनक हाफिज सईद का नाम उस सूची में शामिल है, जो भारत ने पाकिस्तान को सौंपी हुई है, और कहा हुआ है कि पाकिस्तान अपने यहां छिपे दाऊद इब्राहीम सहित सभी इन सभी को भारत सरकार के हवाले करे। लेकिन पाकिस्तान सरकार ने हाफिज सईद की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए कुछ भी नहीं किया। वह धड़ल्ले से अपनी गतिविधियां चला रहा है। उल्टे पाकिस्तान के विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी कह रहे थे कि पाक अधिकृत कश्मीर में भूकंप के बाद उसके लश्कर-ए-तैयबा ने राहत कार्य चलाए हैं। रिपोर्ट बताती हैं कि लंदन में आतंकवादी साजिश का पर्दाफाश होते ही हाफिज सईद को उसी समय पाकिस्तान में उसके मकान में नजरबंद कर दिया गया था । किसी आतंकवादी सरगना के साथ यह बेहद नर्म बरताव है, लेकिन अब कम से कम पाकिस्तान पश्चिमी देशों के सामने यह दावा तो नहीं कर सकता है कि वह आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सख्त कदम उठा रहा है। भारत में सबसे पहले मुस्लिम आतंकवाद का प्रवेश जम्मू कश्मीर में हुआ। खासतौर पर जब वहां 1990 में उग्रवादी हमले तेज हुए। लेकिन अब भारत में यह केवल कश्मीर तक ही नहीं है बल्कि उससे आगे बढ़ गया है।
मुस्लिम चरमपंथी पूरे विश्व में अपना साम्राज्य स्थापित करने का स्वप्न देख रहे हैं। वे अपने वैचारिक सार की दृष्टि से ठेठ पुनरुत्थानवादी हैं और एक खलीफा के नेतृत्व में राष्ट्र-राज्यों की सीमाओं से रहित इस्लामी समुदाय (उम्मा) कायम करना चाहते हैं। उनका लक्ष्य इस्लाम की मौलिक, शुद्ध और प्राचीनतम अवधारणा को पुनः लागू करना और पिछले डेढ. हजार वर्षों के दौरान उसमें आई मिलावट को दूर करना है। उन्होंने इसके लिए जो रास्ता चुना है, वह उनको कितना गर्त में ले जाएगा, यह पूरी दुनिया तो देख रही है लेकिन उनके उलेमा और राजनीतिज्ञ नहीं देख रहे हैं। भारत में उत्तर प्रदेश में देवबंद में विख्यात इस्लामिक मदरसा दारुल उलूम में पिछले दिनों इस्लामिक विद्वानों ने हर किस्म के आतंकवाद पर लंबी चर्चा तो की, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ देश के विभिन्न शहरों में सम्मेलन आयोजित करने के फैसले के अलावा उसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और इस सम्मेलन के संयोजक मौलाना अरशद मदनी का कहना था कि दारूल उलूम को इसलिए मैदान में आना पड़ा क्योंकि देश की धर्मनिरपेक्ष ताकतें इस तरफ ध्यान नहीं दे रही हैं। दारूल उलूम के उलेमा सोचते थे कि भारत में प्रजातांत्रिक ताकतें हर प्रकार की दहशतगर्दी के खिलाफ अभियान चलाएंगी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। मदनी का कहना था कि दुर्भाग्य से देश में धर्मनिरपेक्ष ताकतें बिखरी हुई हैं और वह कमजोर पड़ती जा रही हैं। उनका कहना है कि यहां आतंकवाद ने करीब 18 वर्ष में अपनी जड़े जमाई हैं जिन्हें एक दिन में खत्म नहीं किया जा सकता। इसके खिलाफ लंबी लड़ाई चलेगी। इस सम्मेलन में देश के दूसरे मुसलमानों बरेलवियों और शिया संप्रदाय के उलेमाओं ने शिरकत नहीं की जबकि उनको भी बुलाया गया था। मुसलमानों की नई पीढ़ी ने आतंकवाद के खिलाफ देवबंदियों के इस अभियान को किस तरह लिया होगा यह कहना अभी मुश्किल है क्योंकि जो कुछ देश और दुनिया में घट रहा है वह नई पीढ़ी बड़े गौर से देख और समझ रही है।
कश्मीर में सक्रिय कट्टरपंथी महिला संगठन दुख्तराने-मिल्लत की प्रमुख आसिया अंदराबी ने पिछले साल कहा था कि दुनिया में केवल दो ही राष्ट्र हैं-इस्लाम और गैर इस्लाम। उसके संगठन का लक्ष्य पूरे विश्व में एक ही राष्ट्र इस्लामी राष्ट्र की स्थापना करना है। उसे मालूम है कि ऐसा संभवतः उसके जीवनकाल में पूरा न हो पाए, लेकिन वह इसके लिए कोशिश करती रहेगी। कुछ वर्ष पहले स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के अध्यक्ष ने भी यह कहकर सबको चौका दिया था कि उनके संगठन का लक्ष्य पूरे भारत को इस्लामी देश बनाना है। दरअसल मुस्लिम आतंकवाद की विचारधारा सऊदी अरब की प्रचारित वहाबी या सलाफी इस्लाम की विचारधारा मानी जाती है। सऊदी अरब के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के कारण विभिन्न अमरीकी प्रशासकों ने सीआईए और एफबीआई को आतंकवादी गुटों के साथ उसके संबंधों की जांच करने से बार-बार रोका है। अंतरराष्ट्रीय इस्लामी जिहाद को दी जा रही उसकी वित्तीय सहायता अब जगजाहिर हो चुकी है। भारत में सिमी, ओसामा बिन लादेन को अपना आदर्श मुजाहिद मानती है। रियाद स्थित वर्ल्ड असेंबली ऑफ मुस्लिम यूथ और कुवैत स्थित इंटरनेशनल इस्लामिक फेडरेशन ऑफ स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन के साथ उसके घनिष्ठ संबंध है। अमरीका में शिकागो स्थित कन्सेल्टेटिव कमिटी ऑफ इंडियन मुस्लिम्स से भी उसे नैतिक एवं वित्तीय मदद मिलती है।
भारत के दक्षिण भारतीय नगरों में हिंसक वारदातें कराता रहा सिमी का सरगना सीएएम बशीर समुदाय को नफरत के सबक सिखाता है। नतीजा यह है कि लगभग सभी आतंकी गिरोहों में केरल के कार्यकर्ता भरे पड़े हैं। इतना जरूर है कि वे अपने पैतृक राज्य केरल में कोई ऊधम नहीं मचाते। केरल के चालाकुड़ी ऐरोनॉटिकल इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ चुका बशीर अपने सह अपराधी साकि नचां की साजिश से मुंबई के 2003 के श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों को अंजाम दिला चुका है। उसने केरल में आतंकियों की नर्सरी सी कायम करा रखी है, जहां से सामाजिक-धार्मिक कार्यकर्ताओं के वेश में आतंकी अन्य राज्यों में पहुंचकर कट्टरपंथियों से जुड़ते रहते हैं। सिमी के गुर्गे पर्याप्त एहतियात बरतकर अपने रिश्ते सामाजिक धार्मिक संगठनों से जुड़े बताते रहते हैं। सीएएम बशीर को अपने सहयोगी गुर्गे जुटाने में ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है। मलप्पुरम और कोंडोटी जिलों में तहरीक तहफ्फु-ए-शाइरे इस्लाम और मुस्लिम यूथ फोरम करूना फाउंडेशन जैसे संगठनों की आड़ में उसके नए-नए गुर्गे हिंसक वारदातों के लिए चल निकलते हैं।
बंगलूर में गिरफ्तार हुआ कंप्यूटर इंजीनियर आतंकवादी कामाकुट्टी उन्हीं में से एक है जो लश्कर कमांडर मोहम्मद फैजल का गुर्गा रहा है, जिसने 2002-2003 के दौरान मुंबई में धमाके कराए थे। ज्यादातर विश्वस्तर पर इंटरनेट जिहादियों से संपर्क बनाए रहते हैं जिनका काम नफरत हिंसा फैलाने का बना रहता है, लेकिन धार्मिक आस्था के कारण वे नशे के आदी नहीं होते। वे अपने काम के लिए विदेशी समर्थकों से येन-केन-प्रकारेण रकम हासिल करते हैं। उन्हें अक्सर 15वीं सदी के जिहादी मालाबारी जैनुद्दीन की कृति तुहफत-अल-मुजाहिद्दीन के सबक पढ़ाए जाते हैं, जो पुर्तगालियों का विरोध किया करता था। केरल सरकार कहती रहती है कि आतंकवादियों की नर्सरियों पर वह नजर रखती है, लेकिन जाहिर तौर पर उसने उनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जिससे वहां से सैकड़ों बशीर निकलते जा रहे हैं। भारत में मुस्लिम आतंकवाद का खतरा कितना बढ़ चुका है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब आतंकवाद को भारत में स्थानीय समर्थन मिलने लग गया है।
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