Tuesday, May 3, 2011

अष्टावक्र: निरमा बाबा की चौथी आंख

अष्टावक्र: निरमा बाबा की चौथी आंख: "एक दिन सुबह सुबह पत्नी ने मेरे हाथो से झाड़ू लेकर गर्मागरम चाय की प्याली रख दी । आसन्न खतरे को भांप कर मै सर्तक हो गया । श्रीमती ने कहा सुनो..."

एक दिन सुबह सुबह पत्नी ने मेरे हाथो से झाड़ू लेकर गर्मागरम चाय की प्याली रख दी । आसन्न खतरे को भांप कर मै सर्तक हो गया । श्रीमती ने कहा सुनो आज कल मेरा समय खराब चल रहा है क्यो न किसी अच्छे बाबा की शरण मे चलें | मै मन ही मन भुनभुनाया झाड़ू पोछा मै कर रहा हूं और समय इनका खराब चल रहा है । श्रीमती ने निरमा बाबा की जानकारी दी बड़े पहुंचे हुये बाबा हैं टीवी चैनलो मे छाये रहते हैं । मैने बहुत समझाया कि बाबा लोगो का चक्कर बेकार है भाई केवल टोपी देते अरे उनमे ऐसी शक्तियां होती तो खुद का भला पहले करते काहे गरीबो से पैसे लेने की दरकार होती और ये टीवी वाले भी इनको नैतिकता से कोई लेना देना थोड़े है जिससे पैसा मिला उसको दिखा दिया । लेकिन समझाना व्यर्थ था पूरे तीन हजार रूपये बाबा के बैंक खाते मे जमा करके बाबा से उनके एक शिविर मे मिलने का नंबर लगा ।



पहुंचा तो देखा सैकड़ो की भीड़ थी संपर्क स्थल पर एक दादा टाईप के भक्त ने मनी रिसीट की जांच की और ससम्मान लाईन मे लगा दिया । नियत स्थान पर पहुचते ही मैने नजर घुमाई चारो ओर भक्ती का सागर हिलोरे मार रहा था वही कुछ मेरे टाईप के असंतुष्ट भी थे जो कि बलपूर्वक लाये गये थे । बाबा का कार्यक्रम शुरू हुआ सबसे पहले लाटरी लगी वाले अंदाज मे कुछ भक्तो ने बाबा का गुणगा्न शुरू किया किसी की लड़की की शादी बाबा के आशीर्वाद से हुई थी किसी का व्यापार रतन टाटा की तरह चमक गया था लाईने ऐसी बोल रहे थे कि मानो स्वयं कादर खान ने लिखी हो मैने मन ही मन अनुमान लगाया कम से कम 3000 प्रतिदिन लेते होंगे । उधर पत्नी ने विजयी निगाहो से मुझे देखा मानो मुझे उसका उपकार मानते हुये रात को आधा घंटा अतिरिक्त हाथ पैर दबाने का निर्देश दे रही हो ।

खैर नये भक्तो का नंबर आया एक ने अपनी समस्या बताई उसके लड़के का मन पढ़ाई मे नही लगता था । बाबा ने पूछा गाय को रोटी देते हो जवाब मिला हां बाबा , पराठा खिलाते हो "हां बाबा" । मैने मन ही मन सोचा कि अब फ़से बाबाजी लेकिन बाबा भी महा ज्ञानी थे उनने पूछा ज्वार गेहूं और बाजरे की मिश्रित रोटी खिलाते हो । अब इसका जवाब तो ब्रह्मा जी को भी न से ही देना पड़ता बेचारा भक्त क्या कहता । बाबा ने विजयी मुस्कान से कहा किरपा कैसे होगी रोज ३ रोटी खिलाया करो और फ़िर हाथ उठा कर आशिर्वाद दिया । भक्त भी खुशी खुशी दंडवत हो गया । ऐसे ही बाबा किसी को आलू की चाट खाने या खिलाने बोल रहे थे तो किसी को नरियल बाटने और १०० फ़ुट दूर से ही उनकी शक्तीशाली किरपा भक्तो पर हो जा रही थी ।


अब हमारा नंबर आया भोली श्रीमती ने श्रद्धा पूर्वक सिर नवाया पीछे मै भी अनिच्छा से खड़ा हो गया बाबा ने पूछा क्या दिक्कत है बेटा श्रीमती ने जवाब दिया मेरे पति लेखक भी हैं पर जहां भी अपनी रचनाएं भेजते हैं मेल आ जाती है क्षमा कीजियेगा अभी हमारे यहां भुगतान की सुविधा नही है वैसे आप लिखते शानदार है ।आप ही बताओ बाबा पैसा ही नही मिलेगा तो बेचारा लेखक जियेगा कैसे । बाबा ने ध्यान से मेरी ओर देखा और अपनी चौथी आंख का प्रयोग कर मेरे चेहरे पर उभरी अश्रद्धा को भी पढ़ लिया और मुझे अपना पर्मानेंट चेला बनाने का प्रण कर लिया शायद उनको अपना प्रवचन लिखवाने के लिये किसी लेखक की दरकार रही होगी ।


बाबा ने पूछा क्यों मदिरा पीते हो पीछे से श्रीमती ने गर्व से कहा पीते थे बाबा पर मैने शादी के बाद छुड़वा दी है । बाबा ने पूछा आखिरी बार कब पी थी मैने श्रीमती की ओर देख भय से सूखे होठो पर जीभ फ़ेरी बाबा ने कहा डरो मत सही सही बोलो पत्नी भी जलती आखों से घूर रही थी मानो कह रही हो कि पीने मे शर्म नही आयी अब बताने मे लजा रहे हैं मैने धीरे से कहा दो हफ़्ते पहले । "कहां पी थी" मैने धीरे से जवाब दिया हिन्दी की दुर्दशा सम्मेलन मे गया था वहां । भुगतान किसने किया था अब गर्व करने की बारी मेरी थी जी एक अमीर हिंदी प्रेमी ने । बाबा ने पूछा अपने पैसे से कब पी थी आखिरी बार मैने कहा पेड न्यूज के विरोध मे हुये सम्मेलन मे १ महिने पहले । बाबा मुसकुराये बेटा तू तो भोलेनाथ का भक्त है नही पियेगा तो किरपा कैसे होगी रोज तीन पैग पिया कर जब तक मुफ़्त मिले तो ठीक है पर ध्यान रहे पीना रोज है ।


मै ठगा सा खड़ा रह गया वाह ऐसे किरपालू बाबा और मै मूर्ख आज तक इनसे दूर था मै बाबा के चरणॊ मे दंडवत हो गया । अभी मुझ पर और कुपा होनी बाकी थी बाबा ने कहा बेटा एक बात ध्यान रहे घर मे झाड़ू पोछा कुछ भी किया तो तेरा भाग्य तुझसे रूठ जायेगा । मै आकंठ चीत्कार उठा "निरमा बाबा की" पुरा शिविर गूंज उठा सारे पुरूष भक्त बोल उठे "जय" मै कसम खा कर कह सकता हूं कि उसमे एक भी महिला की आवाज न थी । बाबा की भक्ती मे डूब कर मैने तुरंत अगले शिविर के लिये नगद रसीद कटाई ( अभी बर्तन धोने और खाना बनाने से मुक्ती मिलना बाकी जो था ) और सपत्नीक घर की ओर लौट चला ।

घर लौट कर मैने एक हफ़्ते तक स्वर्ग की अनुभूती की ऐसा लग रहा था मानो नीचभंग राजयोग स्वयं मेरी कुंडली मे उतर आया हो यहां तक की अड़ोसी पड़ोसी भी मुझसे जलने लगे थे कि एक दिन मैने अपने पैरो मे कुल्हाड़ी मार ली । हुआ कुछ ऐसा कि रात की ठीक से उतरी भी न थी और नींद भी मेरी खुली न थी कि श्रीमती ने मुझसे पूछा क्यों जी क्या ये बाबा लोग सच्चे होते हैं मेरे मुह से निकल गया अरे सब पाखंडी है साले भोले भाले लोगो को ठगते हैं बस क्या था मेरे उपर एक बाल्टी पानी पड़ा और हाथो मे झाड़ू थमा दिया गया । वो दिन है और आज का मै अपने आप को कभी माफ़ नही कर पाता हूं ।

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