Saturday, December 18, 2010

7- Trayodashi / Pradosh fast falling on a Saturday शनि प्रदोष / त्रयोदशी व्रत विध

7- Trayodashi / Pradosh fast falling on a Saturday  शनि प्रदोष / त्रयोदशी व्रत विध
 
7. Sage Gargacharya spoke '' Hey master of amazing intellect ! you have described us the fast stories related to the fast of Trayodashis for pleasing Lord Shiv and Paarvati .Now we have a wish to know about the Trayodashi / Pradosh fast falling on a Saturday, so please narrate its story.Suta ji now spoke - '' Hey Rishi { sage } ! you certainly have great love for the feet of Lord Shiv and Devi Paarvati ji , now let me narrate you the story of the saturday Trayodashi fast.


It is an ancient story, there was a Brahmin woman,she was very poor, she became sick of the poverty and hence went to the sage Shandilya and spoke - '' Hey great Sage ! I am deeply sorrowful, please relieve me and solve my problem. Both of my sons are in your shelter .My elder son who is the son of a king, his name is Dharma and youger son's name is Shuchivrat , only you can save us from this poverty.'' Hearing this Rishi suggested them to keep the fast of Trayodashi.Hence all three of them started keeping this fast.After some time when Trayodashi came, three of them decided to keep the fast, when the younger son Shuchivrat was going to a pond to take a bath, on his way he found a pot { urn } made of gold, filled with money.


He took that golden pot to his home and pleasingly showed it to his mother and told her that '' Mother ! I have found this money on the way '' Seeing that money their mother praised the glory of Lord Shiv.She called her elder son Rajputra {prince} and told him , '' Son, see this money has been given to us by the grace of Lord Shiv., hence both of you divide this money equally amongst yourselves.'' Hearing these words of his mother, Rajputra meditated upon Shiv and Paarvati and said '' This money belongs to your own son mother, I will not take it. I will accept only that money which Shiv Paarvati will grant to me only.'' Saying this Raajputra continued his worship of Lord Shiv.


One day both the brothers thought of roaming about.When they saw so many Gandharva girls playing here and there, the younger Shuchivrat said : '' Brother let us just stay here, we will not move any further.''But Raajputra went near to those girls alone . One of those girls got attracted seeing that handsome prince and she came near to him and spoke to her friends :'' Hey friends ! near to this jungle there is another jungle.You all go there and see the different blossoms , it is a very beautiful time, you all should go there and enjoy its beauty.I will be sitting here, as my foot is aching a lot.Hearing this, all her friends went away to another woods.Now that beutiful young girl kept on staring at the young prince, he in turn kept on looking at her too.


She spoke , '' Where do you live? Where are you from/? What's your name ?Which king's son are you ?''Prince spoke : '' I am the son of the king of Vidarbha country .you introduce yourself.''Girl spoke : I am the daughter of Bidravik Gandharva , my name is Anshumati. I have read your mind already.You are attracted towards me.God has made us for each other.''The girl put the garland of pearls on him as a token of love.Prince accepted the gift and spoke : '' Hey gentle lady , but you know what I am very por.'' Hearing these words of the Price the girls said :'' But I will do the sme { marry you.}still, Now you go back to your home.'' Saying this the girl, went to her friends.Prince narrated the whole story to his brother Shuchivrat.


On the third day, the prince took his brother Shuchivrat alongwith him in that very jungle.Here Gandharva king also took his daughter there.Seeing these brothers , he made them sit and told them , '' I had went to the mount Kailaash.There Lord Shiv said to me, there is a prince named Dharmgupta.He has lost his kingdom, he is now very poor.He is my great devotee, Hey king of Gandharva, help him''Hence with the order of Mahaadev , I have braught my daughter for you, now you take care of her.I will help you to attain your kingdom back.Hence he married his daughter to him.After getting the riches and the beautiful bride, the prince was very pleased.With the grace of the Lord, he defeated his enemies and attained back his kingdom and started living happily.''


Aum Namah Shivaya

गर्गाचार्य जी ने कहा - '' हे महामते ! आपने शिव शंकर जी कि प्रसन्नता के लिए समस्त त्रयोदशी व्रत का वर्णन किया। अब हम शनि प्रदोष / त्रयोदशी व्रत विधि सुनने कि इच्छा रखते हैं , सो कृपा करके सुनाईये ।तब सूत जी बोले -'' हे ऋषि ! निश्चय ही आपका शिव पार्वती जी के चरणों में अत्यंत प्रेम है , मैं आपको शंनी त्रयोदशी के व्रत की विधि बतलाता हूँ , सो ध्यान से सुनें।

पुरातन कथा है कि एक निर्धन ब्राह्मण की स्त्री दरिद्रता से दुखी हो शांडिल्य ऋषि के पास जाकर बोली - '' हे महामुने ! मैं अत्यंत दुखी हूँ , दुःख निवारण का उपाय बतलाईये। मेरे दोनों पुत्र आपकी शरण हैं मेरे ज्येष्ठ पुत्र का नाम जो कि राजपुत्र है , और छोटे बेटे का नाम शुचिव्रत है , हम दरिद्री हैं { गरीब } आप ही हमारा उधार कर सकते हैं , इतनी बात सुनकर ऋषि ने शिव त्रयोदशी /प्रदोष व्रत करने के लिए कहा , तीनों प्राणी प्रदोष व्रत कने लगे। कुछ समय बाद जब त्रयोदशी का दिवस आया तो तीनों ने व्रत करने का संकल्प लिया , छोटा लड़का जिसका नाम शुचिव्रत था एक तालाब पर स्नान करने को गया , तो उसे मार्ग में सोने का कलश धन से भरा हुआ मिला , उसे लेकर वह घर आया , प्रसन्न होकर माता को कहा -'' माँ ! यह धन मार्ग से प्राप्त हुआ है , माता ने धन देखकर शिव महिमा का वर्णन किया राजपुत्र को अपने पास बुलाकर बोली देखो यह धन हमें शिव जी कि कृपा से प्राप्त हुआ है ।अतः प्रसाद के रूप में दोनों पुत्र आधा - आधा बाँट लो , माता का वचन सुनकर राजपुत्र ने शिव जी का ध्यान किया और बोला - '' हे भगवन , यह धन आपके पुत्र का ही है, मैं इसका अधिकारी नहीं हूँ मुझे जब आप और देवी पार्वती जब देंगे तभी लूंगा। इतना कहकर वह राजपुत्र शंकर जी कि पूजा में लग गया , एक दिन दोनों भाइयों का प्रदेश घूमने का विचार हुआ , वहां उन्होने अनेक गन्धर्व कन्याओं को खेलते हुए देखा , तो शुचिव्रत ने कहा - '' भैया , हमें इससे आगे नहीं जाना है'' इतना कहकर शुचिव्रत उसी स्थान पर बैठ गया , परन्तु राजपुत्र अकेला ही स्त्रियों के बीच जा पहुंचा।

वहां एक स्त्री जो कि अति सुन्दर थी , राजकुमार को देखकर उसपर मोहित हो गयी और राजपुत्र के पास जाकर कहने लगी --'' हे सखियों ! इस वन के समीप ही जो दुसरा वन है तुम वहां जाकर देखो , भांति - भांति के पुष्प खिले हैं , बड़ा सुहावना समय है , उसकी शोभा देखकर आओ मैं यहाँ पर बैठी हूँ , मेरे पैर में बहुत पीड़ा है। ये सुनकर सब सखियाँ दुसरे वन में चली गयीं ।वह सुन्दर राजकुमार कि तरफ देखती रही इधर राजकुमार भी उसको देखता रहा , युवती बोली '' आप कहाँ रहते हैं किस राजा के पुत्र हैं ? क्या नाम है ?'' राजकुमार बोला -'' मैं विदर्भ नरेश का पुत्र हूँ , आप अपना परिचय दें '', युवती बोली - '' मैं बिद्रविक नमक गन्धर्व कि पुत्री हूँ , मेरा नाम अंशुमती है मैने आपकी मनःस्थिति को जान लिया है। आप मुझपर मोहित हैं विधाता ने हमारा संयोग मिलाया है। युवती ने मोतियों का हार राजकुमार के गले में डाल दिया ।राजकुमार ने हार स्वीकार करते हुए कहा --'' हे भद्रे ! मैंने आपका उपहार स्वीकार कर लिया है , परन्तु मैं निर्धन हूँ ''।राजकुमार के इन वचनों को सुनकर गन्धर्व कन्या बोली कि'' मैं जैसा कह चुकी हूँ वैसा ही करुँगी , अब आप अपने घर जायें''।।इतना कहकर कन्या अपनी सखियों से जा मिली घर जाकर राजकुमार ने शुचिव्रत को सारा वृत्तांत कह सुनाया।

तीसरा दिन आया ,वह राजपुत्र शुचिव्रत को लेकर उसी वन में जा पहुंचा , वहीँ गन्धर्वराज अपनी कन्या को लेकर आ पहुंचा ।इन दोनों राजकुमारों को देख आसन दे कहा कि,'' मैं कैलाश पर गया था वहां शंकर जी ने मुझसे कहा कि धर्मगुप्त नाम का राजपुत्र है जो इस समय राज्यविहीन निर्धन है , मेरा परम भक्त है हे गन्धर्वराज ! तुम उसकी सहायता करो'' , तो मैं महादेव जी कि आगया से इस कन्या को आपके पास लाया हूँ। आप इसका निर्वाह करें , मैं आपकी सहायता कर राजगद्दी पर बिठा दूंगा ।इस प्रकार गन्धर्वराज ने कन्या का विधिवत विवाह कर दिया। विशेष धन और सुन्दर गन्धर्व कन्या को पाकर राजकुमार अत्यंत प्रसन्न हुआ। भगवान् की कृपा से अपने शत्रुओं को हराकर राज सुख भोगने लगा।''


ॐ नमः शिवाय

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