Tuesday, May 3, 2011

अष्टावक्र: भ्रष्टाचारी मरीच , सूर्पणखा और अन्ना विश्वामित्...

अष्टावक्र: भ्रष्टाचारी मरीच , सूर्पणखा और अन्ना विश्वामित्...: "एक बार फ़िर हिलने लगा था इंद्र का सिंहासन । भला कि जय मेनका ने सिखलाया समझौते का आसन ॥ बढ़ी विश्वामित्र के गौरव की जद । स्वीकार हुआ ..."

एक बार फ़िर हिलने लगा था इंद्र का सिंहासन ।

भला कि जय मेनका ने सिखलाया समझौते का आसन ॥


बढ़ी विश्वामित्र के गौरव की जद ।


स्वीकार हुआ ब्रह्म ऋषि का पद ।।


शरद रितु का पवार बन गया सूर्पणखा ।


कर न सका कुछ झोंक भाड़ का ।


एक खेमा झूम झूम खुशी मनाता ।

एक टाल पराजय सांस राहत की पाता ।।

दूर खड़ा संपादक चिल्लाता ।

इस जीत से मेरा भी नाता ॥


एक भगवा झंडा हुआ है ढीला ।

भ्रष्ट आचरण ने किया था गीला ॥

न बात चलती आज विश्वामित्र की ।

जो राह चलते सदचरित्र की ॥

मंत्रीगण मुक्त हुये चाल टेढ़ी चलने को ।
मायावी मरीच मुक्त हुआ मनमर्जी करने को ।।

मरीच को क्या 2 जी से 3 जी हो जायेगा ।

भारत का जन मानस फ़िर हाथ मलते रह जायेगा ॥


लेखक - पंडित राम किशोर मेहता एवं अरूणेश दवे

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